"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

Sunday, January 2, 2011

शिव-शक्ति

यह मन रुकता नहीं,सत्य बात मानता ही नहीं,समझता ही नहीं,अग्नि की चिंगारी की तरह जलाता भी है,नदी के वेग में बहाता भी है,और विरह की वेदना में तड़पाता भी है।क्या करे पथिक,यही सभी के जीवन की सत्यता है।मृग को अपने ही भीतर कस्तुरी के सुगंध के लिए व्याकुल होकर दर-दर भटकने,खोजने की व्यथा,हे पथिक तेरी भी है।मानव जीवन भौतिक कर्म का एक ही मतलब है कि घोर कर्म करो,इस कर्म से जीवन चलता है।यह यात्रा रुकेगा नहीं,बार बार कर्म बँधन में बँधने के लिए यात्रा होगा ही,परन्तु जब भौतिक कर्म के साथ भक्ति,भजन,जप,तप भी करेंगे तो यात्रा ऊपर की ओर होगा।
किस लोक की यात्रा होगी यह सब भिन्न-भिन्न देव शक्तियों की साधना के ऊपर निर्भर करता है।हे पथिक!कहा जाना है तुम्हे वही अपना सनातन घर जिससे च्युत होकर हम कई जन्मों से भटक रहे है।यह यात्रा मन की स्थिरता के बिना कठिन है,गुरु चाहिए या कोई देव शक्ति जो मन के वाह्य विचारों को जो कई पापजनित कर्म से प्रभावित है,उसे निकाल बाहर करने की विधि बता दे।जब तक मन पर से काजल का लेप मिटेगा नहीं,मन के दर्पण में आत्मदर्शन कैसे संभव है।सिर्फ प्रवचन सुनने,पुस्तक पढ़ने से मन स्वच्छ नहीं होगा,वहा घोर कर्मकाण्ड,जप-तप,भजन-ध्यान,एकांत-चिंतन,गुरु-कृपा,इष्ट-कृपा से धीरे-धीरे मन पवित्र होने लगेगा,तब तुम जीवन के रहस्य को समझने लगोगे,तब परमात्मा का आभास होने लगेगा।शाक्त धर्म सबसे ऊपर है माँ काली की उग्रता,प्रचंडता इस जगत में सभी जानते है,वह शिव की शक्ति है।वह इस ब्रह्मांड में सबसे ऊपर है,शिव प्रेमी है,वही श्री विष्णु की योगनिद्रा भी है।मानव,देव,पशु पक्षि सभी इनके माया से प्रभावित है।यह सती के रुप में आयी,वही इन्होने "दशमहाविद्या" का रुप प्रकट किया।कालिका के उग्र रुप को देखकर जगत में हाहाकार मच गया,इस सृष्टि के विरोधी तत्व को यह सर्वनाश कर रही थी।अतिक्रोध में सिर्फ सुधार करना है,दुर्जन,असुर,राक्षस प्रवृति वाले का सिर ही काट लेती है।अब करो उपद्रव मानते ही नहीं,समझते ही नहीं जाओ नरक की वेदना सहो।देव,दानव,मानव त्राहि त्राहि करने लगे,अब तो यह सृष्टि ही नहीं बचेगी,कोई उपाय नहीं,किसको इस ब्रह्मांड में इतनी हिम्मत जो काली के उग्र रुप के सामने जाये,तब जाकर सदाशिव को निचे लेटना पड़ा।जैसे काली का पैर शिव के ह्रदय पर पड़ा,उस स्पर्श से काली चिहुंक गयी,रोमांच एवं लज्जा से नजर निचे पड़े शिव को देख जिह्वा आश्चर्य से बाहर निकल गयी।यही प्रेम का परम मिलन है।जैसे काली सौम्य प्रेममयी हुई,शिव मुस्कुराने लगे।इसी कारण शिव की प्रतिष्ठा में शक्ति दोनों साथ चलते है।इस महाविनाश को शिव ने रोक दिया।हे पथिक!शिव बार बार आते है तुम्हे बचाने,अब तो कालिका भी रक्षा करती है।परम करुण भाव से दोनों हमे देखते है,परन्तु हम सुधरते नहीं,समझते नहीं।रावण शिव का परम भक्त था,फिर क्या कारण था कि शिवभक्त को भी पराजित होकर मृत्यु वरण करना पड़ा।जो शिव मृत्युंजय,मार्कण्डेय ॠषि को अमरता का वरदान दे सकते है।उनके प्रिय भक्त रावण को भी श्रीराम के हाथों पराजित होना पड़ा। क्रमशः.......।