"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

Thursday, September 22, 2011

श्री विष्णुमहात्मय (पितृपक्ष)



सारे कर्मो का रहस्य भागवत गीता में समाहित है।अभी पितृपक्ष का समय चल रहा है,मैं भी अपने पितरो का तर्पण कर उनको प्रसन्न करने के लिए श्रीविष्णु का स्मरण कर रहा हूँ।विष्णु मोक्षदायक है वही इनकी प्रसन्नता कर्म के पाप पुण्य से छुटकारा दिलाकर जीवन में कर्म योग से प्रेम योग की ओर हमें ले जाता हैं।आत्म तृप्ति क्या संभव हैं सारे जीवन की विषमता हमें कुछ भी अवलोकन करने में बाधा पहुँचाती हैं।क्या करने आए हम, क्या मतलब इस जीवन का यह कौन सोचता है।बहुत सारा धर्म हैं दुनियाँ में सभी अपने को सच्चा बताते है,दसरे धर्म को अपने से नीचे के श्रेणी में रखते आए हैं क्या हम पुरी जिन्दगी यही समझने आए हैं।बार बार कई जन्मों से तो आ रहे है क्या जाना हमने,हाँ बहुत सारा पुस्तक पढ जो जानने की थोड़ी संभावना थी उसे भी समाप्त कर दिया।पहले ध्यान,और साधना के द्वारा जब अनुभव होने लगे तब कोई भी ग्रंथ,पुस्तक पढना सार्थक होगा।कर्म योग जीवन में गति देता है वही जीवन के बहुत रहस्यों से हमे वंचित भी रखता है,तब जाकर बिष्णु का शरण हमे लेना चाहिए।
कृष्ण यही तो गीता में कह रहे है कि कुछ भी मत सोचो मेरे शरण में आ जाओ।कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया क्योंकि कृष्ण प्रेम स्वरूप है और प्रेम के बिना कोई भी धर्म उस आत्मा परमात्मा का अनुभव नहीं कर सकता।पुरे जीवन हम अन्वेषण में कि कौन पंथ सही कौन गलत है कौन गुरू सच्चा सिद्ध है कितनी भीड़ है गुरूओं के यहाँ,क्या बड़े बड़े लोग उनके शिष्य है,यही झुठा प्रमाण पर आपका चुनाव है तो आप कभी भी सही अध्यात्म को समझ ही न पाए,क्यों ऐसा होता है कारण राम के चरित्र,अनुशासन,कृष्ण का राधा प्रेमरस का हमारे जीवन में कमी है।कृष्ण अर्जुन को कभी भी शिष्य नही कहा,पार्थ या मित्र का सम्बोधन किया क्योंकि दिखाने या मनवाने वाले गुरू हो ही नहीं सकते गुरू तो कृष्ण जैसा प्रेमरस वाला राम जैसा अनुशासन में रहने वाला शिव जैसा सब कुछ जानने और देने वाला होना चाहिए।जीव येन प्रकारेन जैसा भी कर्म करता है उससे लोक परलोक दोनो बिगड़ जाए तो वहाँ विष्णु की कृपा चाहिए तभी तो हम श्रद्धा से अपने भूल के लिए क्षमा माँगते हुए अपने पितरों को तर्पण कर अंत मे सारे पूण्य कर्म को विष्णु को अर्पण करते है।जब सारे कर्म बिगड़ जाते है तो विष्णु को पुकारना पड़ता है अब कोई सहायक नही बचा अब कौन हमारी सुनेगा तो हे गोविन्द,हे हरि,हे राम त्राहिमाम् हृद्वय से पुकारना पड़ता है और नारायण हैं कि सब अपराधों को भूलकर दौड़ पड़ते है और सारे कर्म बंधन को काट जीव को सदगति दे देते है।सृष्टि में बहुत रहस्य ऐसा है जो आम आदमी उसे ग्रहण करने की क्षमता नहीं रखता,कारण जीव के कर्म बंधन के हिसाब से परमात्मा उसे वैसा ही जीवन देता है कोई कैसे समझे,कोई समझना चाहे भी तो नहीं समझ सकता परन्तु राम के मर्यादा को सीख कर कृष्ण के प्रेम की रासलीला में जाकर सबकुछ पा सकता है इसलिए बिष्णु सर्वव्यापी हैं।सनातन धर्म पूर्ण है ये बताता है कि हमें कैसा जीवन जीना चाहिए मुत्यु का क्या भरोसा कब कैसे आ जाए लेकिन हम अल्पायु को भी दूर कर सारे कर्मो को करते हुए भी जीवन को थोड़ा भी समझ कर अध्यात्मिक चेतना को आत्मसात कर ले तो भी कुछ तो आगे का दिव्य पथ पर बढ गए ऐसा समझना चाहिए।हर शिव है,ह"के बाद "इकार तब "र इससे हरि प्रकट हो जाते है।"ह"यानि शिव,"इकार यानि शक्ति "र" में रमण करने वाला हरि है।आज लोग सुख की तलाश में क्या क्या नहीं करते परन्तु जीवन मिला है तो यदा कदा सुख और दुख दोनो का अनुभव करना पड़ता है लेकिन इष्ट साथ हो तो दुख का पता नहीं चलता।श्रीमद् भागवत क्या है हमें दुख के कर्म जाल से मुक्ति दिलाता है।जीवन में कर्म शुद्ध नहीं हो पाया या पाप की अधिकता या कोई और कारण हो, मृत्यु के बाद प्रेत ,पिशाच होकर भी घोर कष्ट उठाना पड़ता है तथा असाध्य रोग से शरीर जर्जर हो गया हो,मृत्यु आती ही नहीं वहाँ हरि के बिना कौन उबारे हमे,वहाँ श्रीमद् भागवत का परायण से जहाँ जीव को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है,वही असाध्य रोगी को शीघ्र शरीर से मुक्ति मिल जाती हैं।७,८ वर्ष पहले की बात है एक सज्जन के यहाँ रोज रोज उपद्रव होने लगा घर में सारे लोग बीमार रहने लगे,वही घर में तीन आदमी कमाने वाले थै उसमें एक आदमी का नौकरी में अचानक गबन का आरोप लग गया,दुसरे का दुर्घटना में शाररिक और आर्थिक क्षति हो गई वही तीसरा विक्षिप्त हो गया।नाते रिश्तेदार सभी ने मदद शुरू किया परन्तु जो मदद करता वह भी किसी न किसी समस्या में उलझ जाता तभी किसी ने कोइ ज्योतिषी से मिलवाया,वह ज्योतिषी ने ग्रह शांति का विधान करवाया परन्तु कोइ लाभ नहीं हुआ।कुछ दिनों के बाद मेरे एक परिचित ने उनलोगों को मुझ से मिलवाया,मैं देखते ही समझ गया कि ब्रह्मपिशाच के उपद्रव से ये परिवार के लोग कष्ट भोग रहे हैं।मैंने ब्रह्मपिशाच से समपर्क किया और श्रीमद् भागवत का परायण शुरू कराया और अंतिम दिन विशेष हवन कराया ,उसी दिन पिशाच ने मुझसे कहा कि मेरी मुक्ति हो गई है मैं अब जा रहा हूँ।इस पाठ के बाद इस परिवार के सभी लोग ठीक हो गये,गबन के आरोप से भी मुक्ति मिल गई आज पाँच वर्ष हो गये सारे परिवार के लोग सुखी है।श्रीनारायण जीव पर शीघ्र दया करते है जब सारे रास्ते बन्द हो जाता है तो बिष्णु भक्त के एक बार पुकारने पर दौड़ पड़ते है।वैष्णव सबसे श्रेष्ठ है सारे देव देवी की पूजन इस आचार से किया जा सकता है विष्णु ही शिव है,काली ही कृष्ण है,शिव ही राधा है,राधा ही शक्ति है,सीता ही काली बन जाती है राम ही बिष्णु है सभी एक है लीला वश अलग अलग रूप धारण करते है।पितृ ही बिष्णु है कहा गया है की पितृ पक्ष में घर में देवी देवता के साथ पितृ लोग एक साथ बैठकर पूजन लेते है इसलिए पितृ प्रसन्न तो बिष्णु भी प्रसन्न और बिष्णु भगवान की प्रसन्ता हो तो सृष्टि में सभी वरदायक होकर आशिर्वाद देते है।
"श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवा।जय कृष्ण जय राम श्री विष्णु घनश्याम।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।"

2 comments:

Dr Varsha Singh said...

देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थनी हूं.

रोचक जानकारी पूर्ण प्रस्तुति....

विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।

Unknown said...

Hari om