"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

Saturday, May 28, 2011

साईं बाबा

मैं बचपन से हनुमान जी एवं माँ दुर्गा का उपासक रहा हूँ,कम उम्र में सिद्ध गुरू मिल गए,लेकिन ये सब कृपा हनुमान जी का विशेष रहा है,बहुत बृहद अनुभूति है हनुमान जी का।सारे साधना शिव कृपा,गुरू कृपा माता की उपासना ये हनुमान जी की कृपा से संभव हो पाया है।जब औघड़ गुरू जी समाधि ले चुके उसके एक वर्ष बाद उन्होने दिव्य शरीर से आदेश किया की माता की प्रतिष्ठा तुम्हे अपने यहाँ करनी है।७,८वर्षो पहले मैने शिरडी साई बाबा का एक चित्र खरीद पूजा स्थान के उपर दिवाल में टांग दिया था।मेरा स्वभाव रहा है,कि मै सभी का आदर करता हूँ,परन्तु अंधविश्वास तथा हिन्दु धर्म के बहुत पांखड से हमे चिड़ है,इस पांखड के कारण हिन्दु धर्म विकृत हो गया है,साधु,सन्यासी के रूप मे अंहकारी भक्त भीड़,प्रतिष्टा,प्रवचन मे रातों दिन पैर पुजवाने,पैसा कमा कर अपने संस्था के विस्तार मे लगकर मानव का कल्याण क्या करेगे,ये सभी अंहकारी भक्त है।श्री रामकृष्ण को कहाँ फुर्सत थी,माँ की उपासना के अलावे और बाद मे सिद्ध होने के बाद मानव कल्याण मे लगे।मै साईं बाबा का पूजा भी नही करता था,लेकिन जब गुरू जी ने आदेश दिया तो मैने कहा कि हमारे पास पैसा नही है,कैसे माँ की प्रतिष्ठा कर पाउँगा,मै बहुत उदास था कि क्या होगा तभी उसी रात स्वप्न मे देखा किसी गुफा मे साईं बाबा है,मै उन्हें देखकर रोने लगा की क्या करूँ,बाबा माँ की प्रतिष्ठा कैसे करूँ,गुरू जी का आदेश का कैसे पालन करूँ,मै बाबा के चरणों मे रो रहा हूँ,तो साईबाबा ने मेरे सिर पर अपना हाथ रख कुछ गोपनीय रहस्य से परिचय कराया और कहा मै हूँ न, माता का स्थापना मै करा दूँगा, तु मत रो तथा जीवन के भविष्य की कुछ बाते बताए और मेरा आँख खुल गया।स्वप्न के बारे में मुझे खुद वृहद अनुभव रहा है।मै भावभिवोर था कि साईबाबा का मै कभी पूजा भी नही किया परन्तु उनकी इतनी बड़ी कृपा हुई।कुछ दिन बाद एक आदमी मुझे मंदिर बनाने के लिए कुछ जमीन देने को बोला,मै जमीन रजिस्ट्री कराने कल जाने वाला था,कि रात्री मे माता ने स्वप्न मे कहा कि दुसरे का जमीन मत लो जो तुम्हारे पास एकमात्र जमीन है,उसी पर मेरा स्थापना करो,तथा परिवार के साथ उसी मे रहो,स्वप्न के बाद मै समझ गया कि क्या करना है।बचपन से अभावो मे भी स्थिर रहने वाला मै सब कुछ माता, हनुमान जी पर छोड़ दिया था,दैव कृपा से मेरी पत्नि परम विदुषि एवं परम भक्त रही है,मेरे दोनो पुत्र सत्यम शिवम एवं शुभम शिवम भी बचपन से भक्ति और अच्छे संस्कार मे रहे है,हम सभी छल प्रंपच नही समझ पाते,इस लिए बचपन से सारे देव,देवी का इतना चमत्कार देखते आए है कि लिखूँ तो कई महिने लग जायेगे।अब घर बनाने के लिए कहाँ से धन आयेगा,कारन यह विश्वास था,कि बाबा बोले है,तो बनेगा।२ माह बाद ऐसा संयोग बना कि निर्माण कार्य शुरू हो गया,मुहल्ला के अंतिम छोर पर नदी किनारे घर बनने लगा,वहाँ रात्री मे कितने लोगो का समान चोरी हो जाता था,लेकिन कही से बड़े बड़े १५,२० कुते आ गये,तथा २४घंटे घर के आसपास रहते तथा रात्री में क्या मजाल कि कोई चोर प्रवेश कर पाए,खैर कितने कहानी है,घर के साथ माता का मंदिर बन गया ‌और माँ की प्रतिष्टा हो गई।साईं ने जो सपने मे कहाँ वह वे पूर्ण कर दिए,न धन की कमी हुई,न और कोई परेशानी,कैसे हो गया यह एक चमत्कारिक घटनाएं है।अब पता चला कि साई,तो सदगुरू,शिव,बिष्णु और परमात्मा ही है,बाकी उनका रहस्य मै जान नहीं सकता।मै तो यही समझता हूँ कि साई आए जीवन मे एक स्थिरता आई।औघड़ गुरू जी का आदेश तथा माता की प्रतिष्ठा साई बाबा ने पूर्ण कराया,इसलिए यह घर बाबा का है,जहाँ मै अपनी माँ का ध्यान कर सकता हुँ।उसी समय बटुक भैरव आए,तथा घर बनने के क्रम में सदगुरू स्वामी जी महराज श्री पीताम्बरा पीठ,दतिया से अंतिम दीक्षा हो पाया।एक वर्ष बाद साई बाबा ने मेरी पत्नि को शिरडी आने को कहाँ और हम सपरिवार शिरडी गए।छोटे छोटे कितने चमत्कार हमेशा होते रहता है,ऐसे है साईबाबा।मेरा अपना विचार हो सकता है शायद आपको संशय मे डाले फिर भी आज कुछ कहने को रोक नही पा रहाँ हूँ।अध्यात्म गणित नही है या सारे शास्त्र पढकर भी कुछ पता नही चल पायेगा,कारण असली ,नकली के फेर मे वही लोग पड़ते है,जो हर कार्य मे गणित के दृष्टि से देखते है।द्वैत,अद्वैत,रूप,लीला,शंकर छोटे कि राम बड़े,कौन धर्म या पंथ सही कौन, गलत, यह तो एक भक्त कभी नही सोचेगा,किसी को छोटा बड़ा समझना, भक्त को यह सब सोचने का समय नही है तथा वे क्या जाने ये प्रपंच।मानव का जन्म बड़े भाग्य से मिलता है,देवता भी तरसते है,यह सुनने मे बड़ा अच्छा लगता है,लेकिन क्या हम अपने को मनुष्य कह सकते है, यह हमें सोचना पड़ेगा।खोज आत्मा की करे जो मेरे ही अन्दर है,पर कैसे।कितने पंथ है क्या वह दुसरे से प्रेम करना सीख पाए,हम बड़ा,यह हमारा अंहकार और हमारा मन सारे बँधनो का कारण है।क्या झूठ,क्या है सच यह आप तब जानेगे जब आपकी दृष्टि गणितीय न होकर अध्यात्मिक हो तभी तो जानना होगा।आज जो समय आ गया है,कि धर्म के वेष मे लोग क्या क्या नही करते है,मैने जीवन मे जो देखा है,उसमे मैने पाया प्रत्येक दिन पूजा पाठी,व्रत उपवासी,२० वर्षो मे भी जितने सरल पहले थे,उससे ज्यादा भष्ट हो गये,क्या कारण है?यह सत्य है कि जब हम शुद्ध विचारो से जीवन मे अगर अध्यात्म का सहारा लेते है,उस समय परमात्मा हमारे साथ होता है,यह खुद हमे पता चल जाता है।शास्त्र,प्रवचन,से विचार शुद्धि हम कर पाते है कि नही यह हमे सोचना चाहिए।जीवन में कैसे रहा जाए ये हर किसी का अपना अलग स्वभाव है।साधना,भक्ति मार्ग मे लम्पटता से कुछ हासिल नही होगा। साईबाबा ने हमारे लिए क्या कहा "श्री साई सच्चरित मे....संसार जाल में फँसे हुए मनुष्यों को सदगुरू की आवश्यकता है या नही,इस प्रश्न को लेकर श्री अण्णासाहेब दाभोलकर और श्री काकासाहेब दीक्षित,दोनों ने प्रत्यक्ष परब्रम्ह श्री साई महाराज के सम्मुख चर्चा की थी।उसके बाद एक दिन बाहर जाने के लिए आज्ञा माँगते हुए श्री काकासाहेब ने यों ही प्रश्न किया"बाबा कहाँ जाऊ?"
श्री बाबा ने उत्तर दिया "ऊपर।"    इस पर श्री काकासाहेब ने तुरन्त ही दुसरा प्रश्न किया"परन्तु,मार्ग कैसा है। तब श्रीबाबा बोले"अरे भाई,ऊपर जाने के लिए अनंत मार्ग है।एक मार्ग यही शिरडी है,परन्तु यह मार्ग बड़ा भयानक और संकटपूर्ण हैं।शेर,सिंह,भेड़ियें आदि हिंसक पशु अपने जबड़े खोले हुए मार्ग रोके बैठे है।इस पर श्री काकासाहेब ने पुनःप्रश्न किया "बाबा,यदि हम कोई कुशल मार्ग दर्शक साथ लें तो?श्रीबाबा ने शान्तिपूर्वक उत्तर दिया "बहुत ही अच्छा!योग्य मार्गदर्शक मिला तो आप अवश्य ही अपने निर्दिष्ट स्थान तक पहुँच सकते है।वह मार्ग के सभी विघ्नो तथा संकटो को दूर कर या उनसे बचाकर आपकों सही मार्ग दिखायेगा और आपको अपना अंतिम ध्येय प्राप्त होगा।श्री साई महराज के ये वचन सुनकर श्री अण्णासाहेब दाभोलकर जी के मन में यह पूर्ण विश्वास उत्पन्न हो गया कि सदगुरू ही सच्चा मार्ग दर्शक है।उसका आशीर्वाद प्राप्त किए बिना किसी भी व्यक्ति के लिए यह भवसागर पार कर मोक्षपद तक पहूँचना सम्भव नही हो सकता। केवल धार्मिक ग्रंथो का पारायण करके या संतो के प्रवचनो को सुनकर मनुष्य अपनी आध्यात्मिक उन्नति नही कर सकता।परमार्थ प्रप्ति के लिए सदगुरू की अत्यन्त आवश्यकता है।इसलिए परमेश्वर बार बार अवतार लेकर आते है,इसलिये भक्तों को यही चाहिये कि वे सदगुरू के चरणों में अविचल निष्टा एंव पवित्र भक्ति भाव से पूर्ण समर्पण करें।इसलिए मानव है,तो अपना आत्म मंथन करना चाहिए।साईबाबा हमेशा भक्तों के साथ है।साई महिमा अनंत है,बाबा का वह वाणी "श्रद्धा और सबुरी" जीवन का सार तत्व है।

Tuesday, May 17, 2011

श्री स्वामी


                                                 राष्ट्र गुरु "श्री स्वामी जी" गुरुदेव .....

सारा जीव अपने कर्मो का आदान प्रदान ही तो कर रहा है।कोई किसी का बात मानते नही कारण सभी अपने हिसाब से ज्ञानी है,इस सृष्टि मे गुरू तत्व ही है जो हमें इस कर्म जाल से मुक्त करते है और वह गुरू तत्व परम शिव तत्व है।शिव से बड़ा कोई किसी का शुभ चिन्तक हो नही सकता।शिव ही अनेक रूप घारण कर हमे शांति प्रदान करता है।शिव ही शक्ति है,शिव ही विष्णु है,शिव ही हनुमान है,शिव ही साक्षात परम ब्रह्म जगत गुरू है।जब हमारे गुरू श्री स्वामी जी महराज दतिया मे विराज रहे थे तो तीन विदेशी धर्माचार्य भारत भ्रमण करते हुए दतिया आ पहुँचे।सन्त फ्रांसिस,सन्त जोजिफ,और सन्त पीटर ये श्री स्वामी का नाम सुनकर आए हुए थे।अनेक लोगो ने श्री स्वामी की दिव्यता,साधना एवं विद्वता का गुणगान किया तभी वे तीनो सन्त दतिया पधारे थे।श्री स्वामी तो साक्षात शिव है,उन्हें क्या पता नही हैं।उस समय गुरूदेव आश्रम के प्रांगण में सैंभल के एक वृक्ष के नीचे विराजे थे।श्री स्वामी को उन्होंने अभिवादन किया और फिर बैठ गये।वे सन्त टूटी फूटी हिन्दी भी बोलते थे।बड़े जिज्ञासु भाव से उन विदेशी धर्माचार्यो ने कहा कि "हे सन्त शिरोमणि! मनुष्य ईश्वर से मिलने के लिए बहुत से प्रयत्न करता है और फिर खुद उससे मिलने जाता है,हम जानना चाहते हैं कि क्या कभी ईश्वर भी मनुष्य से मिलने के लिए आता है।उस सन्त का वचन सुनकर श्री स्वामी मुस्कराए और कहने लगे,हे ईश्वर को चाहने वाले बन्दो! ईश्वर मनुष्यों से मिलने के लिए हमारें देश में तो आता है,लेकिन तुम्हारे देश में आता है या नही,तुम लोग अनुसंधान करो।श्री स्वामी का यह वचन सुन वे फिर बोले क्या आपने कभी ईश्वर को देखा है?श्री गुरूदेव ने करूणा से उन सन्तो को देख कहा मैंने तो ईश्वर को नहीं देखा है लेकिन क्या तुमने भी कभी अपने प्रभु यीशु को देखा हैं।वे विदेशी साधु कहने लगे॓,नहीं हमने भी नही देखा है।तब प्रभु श्री स्वामी ने कहा यदि पुत्र होता है तो उसका पिता भी होता है।जिस काया का पुत्र होता है।उसी काया का बाप होना आवश्यक है अन्थया पिता नही माना जा सकता।रात्रि के समय अपने प्रभु यीशु से पूछना कि आपका पिता कौन है और हमें उनके दर्शन कराओ।गुरूदेव का यह वचन सुन वे तीनों विदेशी साधु राजकीय विश्राम गृह चले गए।रात्रि में सोने से पहले उन तीनों नें अपने प्रभु यीशु से उसी प्रकार प्रार्थना की और अलग अलग कमरे में सो गयें।रात्रि में तीनों साधुओं ने एक ही से स्वप्न देखे।उन्होनें देखा कि यीशु उनके पास आए और उनसे कहने लगे कि मेरे पिता वे ही हैं जिनके तुमने दिन  में दर्शन किये थे।यीशु ने श्री स्वामी जी का एक चित्र भी उन साधुओं को दिखाया।सूर्योदय से पहले ही वे तीनो विदेशी सन्त आश्रम पहुँच गए और बरामदे में विराजे परमात्मा सदाशिव श्री स्वामीजी को साष्टांग नमन कर कहने लगे हे जगतगुरू परमपिता हमने यीशु के पिता को देख लिया है और यह भी जान गए हैं कि ईश्वर मनुष्य से मिलने के लिए स्वयं भी आता है।भारत आने का उदेश्य हमारा पूरा हो गया,अब हम अपने देश चले जायेगे।श्री हनुमान जी की बचपन से की साधना ही हमै आगे बढाया।२० वर्ष बित जाने पर गुरू के लिए जो व्याकुलता हमे किन किन संतो,साधको के पास नही ले गया परन्तु कही चैन नही मिला।कारण बचपन से हममे एक लक्षण रहा कि कोई गलत चीज हमे शूट ही नही करता चाहे वह खानपान हो या और कोई चीज।बड़े बड़े साधको के पास जा कर भी भरोसा नही हो पाया तभी हनुमान जी ने स्वप्न में कुछ गोपनीय बात बताया।मैने शिव का ध्यान कर एक मंत्र का जप शुरू किया और इस संकल्प के साथ कि या गुरू मिलेगे या जान दूंगा दो रोज बिना खाए,पिए जप के साथ रोता रहा तभी गहरे ध्यान या नींद में शिव का दर्शन हुआ तथा जीवन के भविष्य के बारे मे ज्ञात हुआ।वचपन से कितने दिव्य स्वप्न आते रहे थे,उसका रहस्य पता चला।इस स्वप्न के बाद करीब चार माह बाद मेरे ज्योतिष गुरू श्री दुर्गा प्रसाद जी ने अचानक एक दिन एक परम साधक श्री सीताराम जी औघड़,काली भक्त से मिलवाये।वे दिव्य विभूति सफेद वस्त्र मे एक रक्तवर्ण दुपट्टा धारण किए, वे मुझे देख हंसने लगे और कहा कि काली साधना करना है वही जगदम्बा तुम्हे सब कुछ दे सकती है।काली से मुझे भय लगता था,लेकिन एक दिन गुरू कृपा ही रहा की मै आगे बढता गया।नौ वर्ष गुरू जी के मार्गदर्शन मे कठोर साधना करता रहा,गुरू जी वाममार्गी साधक थे एक दिन उन्होने कहा मांस मदिरा ले तभी माँ की कृपा प्राप्त होगी,कारण गुरू जी के अधिकतर शिष्य जो न जाने क्यों मुझसे घृणा ही करते थे मैं उनके नजर मे पांखडी तथा अंहकारी था कारण मैं बहुत अनुशासन मे रहने वाला रहा हूँ।मेरे माँ,पिता की मृत्यु को गुरू कृपा से उबर गया लेकिन गुरू मेरे अंनत गहराईयो मे विराजमान थे।उस गुरू सानिध्य में माँ का दिव्य पूजन तथा रात्रि में शिवाभोग,भैरवभोग तो अति रहस्यमय था।जब मांस मदिरा की बात चली तो मैने गुरू देव से कहा हे गुरूदेव मैने संकल्प लिया था कि जीवन मे कभी यह आचार न करूगाँ,परन्तु आप का आदेश सिर आँखो पर तो गुरू देव जोर से हँसने लगे और कहाँ मै तो परिक्षा ले रहा था,माता का आदेश है कि तुम दक्षिण मार्गी ही रहोगे।                

साधक सीताराम जी
                                                                                     साधक श्री विष्णुकान्त मुरिया जी


बहुत सारा वह यादे अभी भी भावविभोर कर देता हैं।उस समय स्वप्न मे श्री स्वामी दिखाई देते थे,परन्तु मैं नही जान पाता कि ये कौन है,लेकिन कभी कभी लगता था कि ये शिव है।काली की साधना और दिव्य दर्शन के बाद यह पता चला कि काली परम दयालु,करूणामयी है,तथा वे भक्त के भाव देखती है,वे परम प्रेममयी है।औघड़ गुरूजी के समाधि एक वर्ष पूर्व मुझे माँ ने वह रहस्य दिखा दिया।उसी समय श्री स्वामी ने दर्शन दिया और कुछ गोपनीय रहस्य से परिचित कराया।मुझे पता चला कि गुरू जी समाधि लेंगे और मुझे अब शिव श्री स्वामी के पास जाना है,उस समय मुझे पता चल गया था,कि जिन्हे मैं स्वप्न मे देखता रहा हूँ वो श्रीस्वामी श्री पिताम्बरा पीठ,दतिया के राष्टगुरू जो काशी विश्वनाथ जी के अवतार लेकर दतिया में बैठे है।जीवन में इतना रहस्य देखा हूँ कि अगर लिखूँ तो एक ग्रंथ बन जायेगा।शिव से शूरू करके साधना करते हुए अंत में स्वामी के चरणों मे अंतिम विश्राम तथा पुर्ण समर्पण अब स्वामी है,जैसा करे,अब वही शिव है वही माँ पीताम्बरा।काली माता ने श्री चरणों मै ला दिया।अब दतिया हमेशा आता रहा परन्तु अज्ञानता वश मेरी दीक्षा नही हो पा रही थी।श्री स्वामी अमृतेश्वर शिव के रूप मे विराजे है।श्री स्वामी ने कई बार मुझे कुछ रहस्य से परिचित कराया तथा कुछ ऐसा लीला रचे कि शारदीय नवरात्र में जाना पड़ा।वहाँ जाने पर पता चला कि कई साधक कई वर्षो से दीक्षा के लिए आए है,परन्तु दीक्षा नही मिलेगा ,कारण दीक्षा मे समय लगेगा,हो सकता है एकाध वर्ष,मैं तो घबड़ा गया और श्री स्वामी के अमृतेश्वर लिंग के पास जाकर कहा कि हे गुरूदेव आपने ही बुला लिया तो ये कैसी लीला है आपका तभी एक आदमी पिछे की ओर से कुछ बोला।मैं पिछे देखा कोई साधक थे ,बोले क्या कोई दिक्कत है मैंने कहा दीक्षा लेना था,उसपर वे बोले कि आप श्री विष्णुकान्त मुरिया जी से मिलिए,वही उपदेशक है,श्रीगुरू जी के प्रिय शिष्य तथा बहुत बड़े साधक के साथ दयालु है,और गुरू चरण पादुका के समक्ष गुरूकृपा से यही दीक्षा देते है।यहाँ जो होता है श्री स्वामी की इच्छा से होता है,और गुरूदेव ने बुलाया है तो दीक्षा अवश्य मिलेगा ऐसा मेरा विश्वास था।मै प्रथम बार श्री मुरिया जी के पास गया,एक दिव्य व्यक्तित्व रक्त परिधान मे एक गौरवर्ण को देख मैने कहा कि मुझे दीक्षा चाहिए तो मेरा नाम पूछा,और गम्भीर मुद्रा मे कहा मिल जायेगा आज ही,स्वयं उन्होने सारी प्रक्रिया पूर्ण करवा कर बोले कि तीन बजे दीक्षा के लिए आ जाए।मैं समय के पूर्व ही पधार गया ,नियत समय पर दीक्षा हुआ,वह क्षण लगा जैसे स्वामी चरण पादुका पर विराजमान मंद मंद मुस्कुरा रहे है,मै थोड़े पल के लिए चेतना शून्य हो गया।जप शूरू करने से पुरे नवरात्र कितने दिव्य अनुभव हुए जैसे जन्म जन्म की मुराद पूरी हुई हो।श्री विष्णुकान्त मुरिया जी परम साधक के साथ एक विशिष्ट ज्योतिष भी है,तथा इतने दयालु है की आज भी उनके मार्गदर्शन से आगे बढ रहा हूँ।हमेशा इन्होने मुझपर अपनी दया दृष्टि रख साधना के गोपनीय मर्म समझा कर मुझे आगे बढाते रहे है।मेरे इस लेख को पढने वाले को मै जरूर कहूँगा कि एक बार श्री पीताम्बरा पीठ जाकर श्री पीताम्बरा माई के साथ श्री स्वामी का दर्शन करे,तथा वहाँ श्री धूमावती माई,महाकाल भौरव,श्री बटुक भौरव,श्री गणेश जी,श्री हनुमान जी,हरिद्रा सरोवर के साथ श्री स्वामी मंदिरम् का दर्शन करे,वही अमृतेश्वर महादेव मे साक्षात श्री स्वामी जी महराज विराज रहे है।यहाँ पर प्राचीन वण्खण्डेश्वर शिव मंदिर भी साक्षात जाग्रत शिव है जो भीम के द्वारा प्रतीष्ठित है,यह अश्वथामा की साधना स्थली रही है साथ मे श्री परशुराम जी का दर्शन भी करे।श्री माँ त्रिपुर सुन्दरी का मंदिर भी है परन्तु वहाँ दर्शन करना संभव नही है।भारत का ऐसा दिव्य शक्ति पीठ जो आज कही ऐसा दिखाई नही देता,जाए तो श्री विष्णुकान्त मुरिया जी जैसे अलौकिक,साधक से मिल आपको आत्मिक शांति मिलेगा।मैने इनका विशाल हृद्वय देखा है,तथा ये कितने विलक्षण पूरूष है शायद मै समझ नही पाता हूँ,कोइ भी समस्या हो शीघ्र समाधान बता देते है।जब गुरू कृपा होती है,तो जीवन के परम सत्य दिखाई देने लगता है।यह गुरू कृपा ही है कि मै स्वामी चरण रज की धूली लगा पाया।नाना पंथ जगत के निज निज गुण गावै।सबका सार बता कर गुरू मारग लावै।मन ही बंधन है,आत्मा की बात करने से कुछ नही होगा,गुरू ही सब कर्ता है,जो जैसा पात्र होगा उस समय गुरू की कृपा मिल ही जाती है।यह स्थान झाँसी के पास है।जीवन मे जब कोई निशचल मन से साधना पर चल पड़े तो स्वामी कृपा करते ही है।

Sunday, May 1, 2011

मंत्र प्रयोग



गृह रक्षा- गाय का गोबर या लाल रंग का घोल लेकर उक्त मंत्र से १०८बार पढ़कर अभिमंत्रित कर लें फिर इसी मंत्र को पढ़ते हुए घर के चारों ओर रेखा खींच दें।ऐसा कर देने से घर में भूत,पिशाच,चोर डाकू के घुसने का भय नहीं रहता।साथ ही हिंसक जंतु,अग्नि भय से भी सुरक्षित रहा जा सकता हैं।
मंत्र- ॐ ह्रीं चण्डे!चामुण्डे भ्रुकुटि अट्टा ट्टे,भीम दर्शने!रक्ष रक्ष चौरेभ्यःवज्रेभ्यःअग्निभ्यःश्वापदेभ्यःदुष्टजनेभ्यःसर्वेभ्यःसर्वौपद्रवेभ्यःगण्डीःह्रीं ह्रीं ठःठः।


टोना टोटका तंत्र बाधा निवारण मंत्र- आज यह भी देखने को मिलता है कि कुछ दुष्ट लोग किसी टोना करने वाले से कोई प्रयोग करा देते है और लोग भयानक कष्ट भोगने लगते है।
दवा करने पर भी लाभ नहीं मिलता है,तब इस मंत्र को ११ माला से सिद्ध कर प्रयोग करे।लोग जादू टोना से प्रभावित होकर विक्षिप्त भी हो जाते है।किसी शुभ मूर्हूत मे ईस मंत्र का प्रयोग करें।एक दीपक जलाकर किशमिश का भोग लगा कर मंत्र सिद्ध करे,फिर प्रयोग करते समय ७बार मंत्र पढ़ फूंक मारकर उतारा कर दें।ऐसा ७बार कर देने पर सभी जादू टोना नष्ट हो जाता हैं।बाद मे एक सफेद भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही से अनार के कलम से मंत्र लिख ताँबा या चाँदी की ताबीज मे यंत्र भरकर काला धागा लगाकर स्त्री हो तो बांया पुरूष हो तो दांये बांह मे ७बार मंत्र पढ़ बाँध ले।
शाबर मंत्र- ॐ नमो आदेश गुरू को।ॐ अपर केश विकट भेष।खम्भ प्रति पहलाद राखे,पाताल राखे पाँव।देवी जड़घा राखे,कालिका मस्तक रखें।महादेव जी कोई या पिण्ड प्राण को छोड़े,छेड़े तो देवक्षणा भूत प्रेत डाकिनी,शाकिनी गण्ड ताप तिजारी जूड़ी एक पहरूँ साँझ को सवाँरा को कीया को कराया को,उल्टा वाहि के पिण्ड पर पड़े।इस पिण्ड की रक्षा श्री नृसिंह जी करे।शब्द साँचा,पिण्ड काचा।फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा
गठिया रोग और वात वेदना-
गठिया या वात रोग से लोग बहुत प्रभावित होकर हमेशा दवा खाते रहते है,इस प्रयोग को करे,लाभ होगा।किसी पर्वकाल मे मंत्र को सिद्ध करे।बाद में सन्धि वात या गठिया,वात या कमर में बाई,वात बेदना वाले रोगी को मंगल या रवि को मोर पंख से २१ बार उक्त मंत्र पढ़कर झाड़े।११ माला जप कर मंत्र सिद्ध कर लें।
मंत्र- ॐ मूल नमःधुक्ष नमः।जाहि जाहि ध्वाक्ष तमःप्रर्कीण अड़्गा प्रस्तार प्रस्तार मु़ञ्च।