"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

Sunday, January 30, 2011

परम सत्य........(राज शिवम)

पहले गण आते है,भक्त आते है,पुत्र आते है तभी जाकर सनातन माता पिता का दर्शन होता है।भैरव प्रसन्न होगे तभी
काली या शक्ति का दर्शन होगा।पुष्पदंत शिव गण ही था जो श्राप के कारण मनुष्य योनि मे आया था,उसने अदभूत शिव भक्ति की परन्तु शिव दर्शन नही हो रहा था,तब गणेश स्तोत्र की रचना की और श्री गणेश दर्शन दिये उसके बाद ही शिव प्रसन्न हुए तभी दर्शन हो पाया।ये ही होता है,पहले हनुमान जी आते है बाद मे सीताराम जी आते है।
श्री राम सीता वियोग मे भटक रहे थे की हनुमान आ गये,भरत वियोग मे तड़प रहे थे की हनुमान जी आ गये।माँ सीता करुण विलाप कर रही थी की हनुमान जी आ गये।विभीषण व्याकुल थे की हनुमान जी आ गये।सुग्रीव बाली के भय से त्राही त्राही कर रहे थे की हनुमान जी आ गये और इस युग मे तुलसी बाबा तड़प रहे थे की हनुमान जी आ गये,मै स्वयं अंतिम जीवन को समाप्त करने जा रहा था की हनुमान जी आ गये।आज करोड़ो भक्त रोते है तो पहले हनुमान या कोई पुत्र भक्त संत आ ही जाते है।पहले हनुमान,गणेश,भैरव,योगनी,मातृका,गण आते है उपासक को देखते है,जाँचते है,परखते है तभी शिव या जगदम्बा या श्री विष्णु का दर्शन होता है,कृपा होता है।सीताराम इस ब्रह्माण्ड के परम तत्व है।वही शिवशक्ति सनातन माता पिता परम ब्रह्म है,सभी एक ही है यही तो परम सत्य है।श्री राम के पीछे सीता खड़ी है और आगे आगे हनुमान जी चलते है।शिव के पीछे माता बग्ला चलती है वही आगे आगे काली चलती है।हनुमान अवतरण सनातन धर्म की रक्षा,भक्तो की रक्षा और राम कथा के लिए ही हुआ है।राम के लिए ये कुछ भी कर सकते है।जब सहस्त्र रावण से युद्ध हो रहा था तो सारी सेना को एक ही बाण मे अपने अपने देश,घर पहुँचा देने वाला सहस्त्र रावण जानता था की शिव अंशात्मक हनुमान भी यहा है,तो मै राम को कैसे परास्त करुँगा।हनुमान जी राम की लीला समझ रहे थे,की यहाँ सीता लीला होने जा रही थी,अब मुझे राम के आगे से हटना पड़ेगा,अब परम शक्ति सीता राम के आगे कालीका रुप धारण करेगी। यह गोपनीय रहस्य है,जो मैंने लिख दिया ,शिवशक्ति लीला में शिव के आगे काली का महा तांडव होगा।सहस्त्र रावण ने बाण मारा राम मुर्छित हो गये ,यह देख सीता रथ से कुद कर काली रुप धारण कर क्षण मात्र में ही सहस्त्र रावण का बध कर दी।सहस्त्र रावण लंका के रावण से हजारों गुणा अधिक बलशाली था। सीता ने काली रुप धारण किया ,क्यों,कारण जब परम ब्रह्म क्रिया रहित होकर तटस्थ हो जाता है तो शक्ति ही सभी क्रिया करती है,यँहा राम को परास्त ,निस्तेज देख काली उग्र होकर विनाश करने लगी तो उनके उग्रता को रोकने के लिए ,शिव को ,उनके रास्ते में निस्तेज ,तटस्थ लेट जाना पड़ा,तभी काली की दृष्टि अपने प्रियतम शिव पर गई और काली का क्रोध जाता रहा,यही तो लीला है,काली ही जगत की मूल शक्ति है। सभी कहीं न कही झुकते है किसी न किसी का ध्यान करते है,परन्तु काली स्वतंत्र महाशक्ति है ये शिव की प्रियतमा है।जब पार्वती से विवाह हुआ,शिव जी,पार्वती को प्रसन्न करने का कई प्रयास करते है,वही पार्वती कितने उग्र तप से शिव को मोह रही है वही काली नृत्य करती है शिव को रिझाने के लिए,कौन है यह काली,जो सीता से काली बन गई।वही काली कभी कृष्ण बन गये।वाह!क्या लीला है।जब सती ने शिव को रोकने के लिए जब दश रुप धारण किया तो प्रथम रुप काली का ही था।सती ने आत्म दाह करने से पूर्व दश रुप प्रकट कर दश महाविद्या कहलायी,जिसमे प्रथम १.काली २.तारा ३.श्री महात्रिपुर सुन्दरी ४.भुवनेश्वरी ५.छिन्नमस्तिका ६.भैरवी ७.धूमावती ८.बगलामुखी ९.मातंगी १०.श्री कमला के नाम से विख्यात हुई,यही जब हिमालय पुत्री पार्वती बन शिव बल्लभा बनी तो ये ही नव दुर्गा रुप धारण करके जगत मे विख्यात हुई।यह ही महाविद्या तत्व है।एक पर शून्य दश निराकार,निर्गूण सभी एक ही है।एक जोड़ नौ यानि दश हो जाता है,यह ही पूर्ण रहस्य है,इसपर कभी लिखूँगा।बिना शक्ति कृपा संसार मे कुछ नही हो सकता,शक्ति के भय से इस ब्रह्माण्ड मे सभी आसुरी प्रवृति वाले थर थर काँपते है,शक्ति का इशारा है,घोषणा है कि शिव की तरफ,राम की तरफ,कृष्ण की ओर भक्त, सज्जन,संतो की ओर टेढ़ी नजर से भी देखोगे तो सिर मुण्डन कर दूँगी,इस जगत मे रहना है तो अपने कर्मो को सही मार्ग पर ले जा,शिव,राम,हरि,सता समझ ये सभी एक ही है।विष्णु मोहिनी रुप बना कर भागते तो शिव सुध बुध खोकर अपनी प्रेममयी लीला का विस्तार किये तो ही हनुमान जी हमारे बीच आ पाये।विष्णु श्याम वर्ण है,वह नारी रुप धारण किये वही काली विष्णु की योगनिद्रा है।कृष्ण के रास मंडल मे शिव भी नारी रुप धारण करते है वही सीता काली रुप धारण करती है।यह सभी परम कृपालु और इनकी यह गोपनीय रहस्य है।जब हम सत्य पथ पर चलेंगे तो पहले गुरु,गणेश, हनुमान.भैरव पहले इनकी कृपा चाहिए तभी सदगुरु,शिव,जगदम्बा,हरि पूर्ण कृपा करेंगे,तभी हमे मोक्ष,ज्ञान तथा ब्रह्म की प्राप्ती होंगी।हम जैसे भी जी रहे है,कोई बात नही परन्तु हमारी चेतना हमे हमेशा उस दिव्य विचारों से अपने कर्मो को सत्य पथ पर ले जाने हेतु हमे हमेशा पथ प्रदर्शक की तरह प्रयत्नशील रखे ये ही हमारा धर्म होना चाहिए।

श्री हनुमत शक्ति मंत्र प्रयोग

हमारे सनातन धर्म मे रुद्रा अवतार हनुमान सदैव विराजमान है,मनुष्य हो या देवी,देवता सभी के कार्य को सम्पन्न करते है हनुमान जी। राम भक्त,दुर्गा भक्त हो या शिव भक्त,सभी मार्गो मे परम सहायक होते है हनुमान। ये शिव अंश भी,शिव पुत्र भी है राम के भक्त भी वही सीता के पुत्र हैं।ये कपि मुख है,वही पंचमुख,सप्तमुख,और ग्यारहमुख धारण करने वाले है।ये सभी जगह सूपूजित है कारण ये संकटमोचन है।माता,पिता के लिए अपने संतान से प्यारा कोई नही होता ,जैसै गौरी पुत्र गणेश है,वही शिवांश देवी पुत्र बटुक भैरव है वही शिवांश राम भक्त हनुमान जी है।
कहा गया है कि बिना गुरु ज्ञान नही होता है वही बिना कुल देवता के कृपा बिना किसी अन्य देव की कृपा प्राप्त नहीं होती है। प्रथम श्री गणेश को स्मरण पूजन किए बिना पूजा प्रारम्भनहीं होता हैं।महाविद्या की साधना करनी हो,वहाँ बिना बटुक कृपा आगे बढ़ना कठिन है।असली माता पिता के पास ये पुत्र ही पहुँचा सकते है,परन्तु अपने इस जीवन के माता पिता की सेवा तथा आदर किए बिना यह संभव ही नहीं है।जीवन के बाधा,संकट का निवारण न हो तो धर्म मार्ग में बढ़ना दुष्कर है।मूर्ति पूजा हो या निंरकार,परन्तु सत्य यही है कि परमात्मा एक हैं,तभी तो कहा गया है कि सत्यम,शिवम, सुन्दरम। सत्य ही शिव है,शिव ही सुन्दर है बाकी सब गौण।एक शिव ही सृष्टि में सत्य है,वही क्रिया शक्ति,चित शक्ति एवं इच्छा शक्ति के रुप में अर्धनारीश्वर है,शिव के बायें भाग में शक्ति हैं,वही शिव के एक रुप है हरि हरात्मक आधा शिव आधा विष्णु,ये शिव की अलग अलग लीला एंव रुप है।शिव सुन्दर है वही उनकी शक्ति सुन्दरी के नाम से विख्यात है,फिर तो शिव के द्वारा रचित श्री रामायण का हनुमत कान्ड को उन्होंने सुन्दर कान्ड का नाम रखा,यह विशेष रहस्यपूर्ण है।सुन्दर कान्ड के प्रत्येक श्लोक का अर्थ समझेगे तो उस शिव के सुन्दर रुप का मर्म समझ में आ जायेगा।सुन्दर कान्ड का पाठ जहाँ होता है सारे अभाव,पाप,रोग विकार स्वतःनष्ट होने लगता है,हमे सिर्फ पूर्ण श्रद्धा से होकर पाठ करना चाहिए।पाठ से पूर्व हमें क्या करना चाहिए यह भी महत्वपूर्ण है। सुन्दर कान्ड मे शिवशक्ति,सीताराम,वरदान,बल,धन,शुभ,दमन,अहंकार का विसर्जन,भक्ति की परकाष्टा,प्रेम,मिलन विश्वास,धैर्य,बौद्धिक विकास क्यों नहीं प्राप्त किया जा सकता हैं।हमारे हनुमान जी वे सत्यम शिव के सुन्दर,लीलाधर हैं,सभी उनके कृपा से प्राप्त हो जाता है।हनुमत उपासना व्यापक है,हर कार्य सुलभ है।प्रथम गुरु,गणेश का पूजन कर राम परिवार ऋषि पूजन कर हनुमत उपासना करने से ही पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।मैं हनुमत का विशेष पाठ प्रयोग लिख रहा हूँ,जो चमत्कारिक है और पूर्ण फल प्रदान करनें मे सक्षम । श्री रामायण के प्रथम रचनाकार शिव है फिर ऋषि बाल्मिकी,फिर गोस्वामी तुलसीदास जी है ।मंत्र कवच के ऋषि देवता भिन्न भिन्न है।बजरंग बाण जो प्राप्त होता है वह भी अधुरा हैं।फिर भी लोगों को लाभ मिलता है। एक एक अक्षर शक्ति सम्पन्न है।श्री हनुमान जी शिवांश है परन्तु वैष्णव परिवार से है इस कारण इनके पूजा में मांस,मदिरा,स्त्री भोग वर्जित है।गृहस्थ आश्रम के भक्त इन्हें अधिक प्रिय है परन्तु साधना काल में नियम का पालन अवश्य करे।स्त्री भक्त मासिक धर्म में इनकी साधना न करें।श्री हनुमान चालीसा बहुत प्रभावी एवं प्रचलित हैं, शनिग्रह से प्रभावित हो या राहुकेतु से भूत पिशाच हो या रोग व्याधि नित्य१,३,७,११,२१,३१,५१,१०८ बार पाठ करने से कामना पूर्ण होती है।यह परिक्षित है।श्री शिव पार्वती सहित गणेश नमस्कार कर,सीताराम,सपरिवार का ध्यान कर श्री गोस्वामी तुलसीदास जी को प्रणाम करे,।विशेष लाभ के लिए तिल का तेल और चमेली का तेल मिलाकर लाल बती का दीपक लगा लें,पूर्व,उतर मुख करके थोड़ा गुड़,का लड्डू या किशमिश का प्रसाद अर्पण कर पाठ आरम्भ करें।कुछ विशेष मंत्र का विधि प्रयोग दे रहा हूँ,इससे अवश्य कामना या संकट का निवारण होता है।
१. भयंकर,आपति आने पर हनुमान जी का ध्यान करके रूद्राक्ष माला पर १०८ बार जप करने से कुछ ही दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाता है।
मंत्र:-त्वमस्मिन् कार्य निर्वाहे प्रमाणं हरि सतम।
तस्य चिन्तयतो यत्नों दुःख क्षय करो भवेत्॥
२. शत्रु,रोग हो या दरिद्रता,बंधन हो या भय निम्न मंत्र का जप बेजोड़ है,इनसे छुटकारा दिलाने में यह प्रयोग अनूभुत है।नित्य पाँच लौंग,सिनदुर,तुलसी पत्र के साथ अर्पण कर सामान्य मे एक माला,विशेष में पाँच या ग्यारह माला का जप करें।कार्य पूर्ण होने पर १०८बार,गूगूल,तिल धूप,गुड़ का हवन कर लें।आपद काल में मानसिक जप से भी संकट का निवारण होता है।
मंत्र:-मर्कटेश महोत्साह सर्व शोक विनाशनं,शत्रु संहार माम रक्ष श्रियम दापय में प्रभो॥
३. अनेकानेक रोग से भी लोग परेशान रहते है,इस कारण श्री हनुमान जी का तीव्र रोग हर मंत्र का जप करनें,जल,दवा अभिमंत्रित कर पीने से असाध्य रोग भी दूर होता है। तांबा के पात्र में जल भरकर सामने रख श्री हनुमान जी का ध्यान कर मंत्र जप कर जलपान करने से शीघ्र रोग दूर होता है।श्री हनुमान जी का सप्तमुखी ध्यान कर मंत्र जप करें।
मंत्र:-ॐ नमो भगवते सप्त वदनाय षष्ट गोमुखाय,सूर्य रुपाय सर्व रोग हराय मुक्तिदात्रे ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ॥

Saturday, January 22, 2011

धर्म कि अनिवार्यता:- “सत्य या असत्य”


सत्य क्या है,असत्य क्या है,यह तो शास्त्र,संत,गुरु मुख वाणी है,जिसमे देव वाणी,शक्ति संवाद,ॠषि मुनि संवाद का विशाल संकलन है।मंत्र,पूजा,अनुष्ठान,तंत्र क्रियाएँ सब धोखा मात्र है।ज्योतिष,हस्तरेखा,रत्न कोरी कल्पना मात्र है।ये साधु,प्रवचनकर्ता,संस्थाने सब अधिक प्रचार प्रसार कर सीधे साधे लोगो को धोखा देना है।तभी तो सामान्य जीवन जीने वाले साधारण लोग अनेक समस्या से ग्रसित भले हो,परन्तु ये उपर्युक्त सभी क्षेत्र वाले मालामाल है।जो जितना योग्य है,वक्ता है,विशेष प्रतिष्ठा अर्जित कर रहे है।जितनी भीड़ आयेगी वह उतने सफल होंगे।क्या ये सत्य के राह पर चलना हुआ या असत्य के राह पर?ये आप हम सभी को अपनी अन्तरआत्मा से पूछना पड़ेगा,समझना पड़ेगा।आज कल इतना धोखा,इतना प्रपंच कितना सस्ता है ये धर्म का दुकान।यहा भगवान,मंत्र,यंत्र को बेचा जाता है।प्रचार आता है,कि श्रीयंत्र,या अमूक यंत्र पूर्ण विधान से प्रतिष्ठा करा कर भेजा जा रहा है शीघ्र आर्डर करे।वाह भाई वाह खूब रही लक्ष्मी यंत्र को बेच बेच कर करोड़ों रुपया कमा कर आप सही में लक्ष्मीवान बन गये।धन्य है लक्ष्मी उपासक आप पर माँ लक्ष्मी की भी दया,करुणा से आपको देख रही है।मेरा भक्त,मेरा व्यापार कर के लक्ष्मीवान बन गया,खुश रहो भक्त।मोक्ष क्या जाने,ज्ञान क्या जानूँ,सिर्फ रुपया इसे क्या जन कल्याण में लगाओगे या अपना भोग का साधन बनाओगे।
 व्यक्ति की अंतरआत्मा सुप्त हो गयी है,इसे पढ़ कर वे लोग खुश होंगे जो मेरी बात को सही मानते है,परंतु उपरोक्त मेरे विचार में ये पूर्ण सत्य नहीं है।ऐसे गलत करने वाले लाखों है।मंत्र,तंत्र,धर्म संस्था,ज्योतिष,योग,ध्यान,अनुष्ठान बिल्कुल सत्य और कल्याणकारी है।साधु संत,साधक.भक्त नहीं रहे तो ये सृष्टि समाप्त हो जायेगी।मंत्र शक्ति से क्या नहीं हो सकता है,परंतु ये योग्य गुरु या मार्गदर्शक बता सकता है।ज्योतिष अवस्य हमारा मार्गदर्शन करता है और कष्ट निवारण का रास्ता भी बताता है।ये तो इस विद्या को जानने वाले सत्य राही है या असत्य जिसके कारण पाखंड फैला हुआ है।दोनों प्रकार के लोग बैठे है सत्य पर चलने वाले और असत्य पर चलने वाले।जहा कोई निश्चित सत्यवादी है तो कोई पूरे असत्यवादी है ,वही कोई कोई थोड़ा सत्य थोड़ा असत्य दोनों राहों पर है।परंतु लोग भी द्वंद में रहते है किसी पर पूर्ण भरोसा नहीं।कोई यंत्र मँगा लेंगे,कोई मंत्र सुनकर.पढ़कर जाप करेंगे।हम धर्म के क्षेत्र में है तो हमारा बड़ा कर्तव्य बनता है,कि लोगों के अंतर कि विकार,शंका दोष दूर किया जाये तथा पीड़ीत को जैसे भी हो मदद का राह बताया जाये भले हमे उसका श्रेय मिले या ना मिले।समाज विकार ग्रस्त होता जा रहा है,लोग अपने दुख से दुखी नही है जितने दुसरे के सुख से दुखी है।व्रत,उपवास कर के भी लोग आत्ममंथन नहीं करते।सही लोग,सही व्यक्ति के पास पहुँच ही जाते है,या घबड़ाते है कारण उन्हे सत्य बड़ा कटु विष सा लगता है।सुबह से रात तक दूसरे की चुँगली करते है,परंतु खुब धार्मिक बन ये सभी अपना अमूल्य क्षण खो रहे।जो जैसा होता है वैसा उसका मित्र समाज बन जाता है।सज्जन तो सज्जन के साथ सुख मानेंगे,परंतु दुर्जन निम्न कोटि को ही शुभचिंतक ही मानेंगे।
इसलिए कोई धर्म के मार्ग में धोखा,पाखंड कर रहे या भला कार्य ये तो उस व्यक्ति के संस्कार पर निर्भर है।अगर विरोध करना है तो उस क्षेत्र में जा कर अवलोकन करे तभी सत्य,असत्य का भेद पता चलेगा।श्रीकृष्ण ब्रह्म है परंतु दुर्योधन उन्हे मायावी समझता था ।ये तो कृष्ण की उस दिव्य लीला को समझ नहीं पाया और महाभारत जैसे विध्वंसकारी महायुद्ध का कारण बना।ऐसे लोगों से सृष्टि और प्रकृति का कोप आम जनमानस को सहना पडंता है।अपनी सुधार समाज का सुधार है।किसी में दोष ना देख कर प्रत्येक रात्रि विचार करे कि दिन भर हम कोई गलत कार्य तो नहीं कर दिये।

Sunday, January 16, 2011

मेष लग्न राशि फल............(राज शिवम)

मेष जैसा नाम से स्पष्ट है इस राशि का प्रतीक मेढ़ा या भेड़ा है।मेष राशि का स्वामी मंगल है।मेष राशि के अन्तर्गत अश्विनी नक्षत्र के चारों चरण,भरणी नक्षत्र के चारों चरण और कृतिका का प्रथम चरण आते है।ग्रह मैत्री के अनुसार मेष राशि सूर्य,चन्द्र तथा गुरु के लिए मित्र राशि है।शुक्र तथा शनि के लिए यह सम राशि है तथा बुध के लिए शत्रु राशि है।इस राशि मे सूर्य अपनी उच्च स्थिति मे होता है तथा शनि नीच स्थिति में।
 प्रकृति और स्वभाव:- मेष अग्नि तत्व वाली राशि है।इसका स्वामी मंगल है जो स्वयं अग्नि ग्रह है।राशि और स्वामी का यह संयोग इसकी अग्नि या ऊर्जा को कई गुणा बढ़ा देता है,किन्तु जल के अभाव मे अग्नि केवल क्षार ही कर सकती है।उसे भाप मे बदलकर उसे रचनात्मक ऊर्जा का रुप नहीं दे सकती।यही कारण है मेष प्रधान जातक अपनी शक्ति का प्रायः अपव्यय या दुरुपयोग करते भी पायें जाते है।मेष चर राशि है,ये जातक ओजस्वी,दबंग,साहसी,दृढ़ इच्छाशक्ति वाले होते हुए भी चंचल प्रकृति के और हठी होते है।बाधाओं को चीरते हुए अपना मार्ग बनाने का प्रयास करते है।वे स्वभाव से अत्यंत स्वच्छंद होते है और अपने काम में जरा भी हस्तक्षेप सहन नहीं करते।यदि उन्हे अपनी मर्जी से काम न करने दिया जाये,तो प्रायः उसे छोड़ कर बाहर निकल आते है और कोई अन्य मार्ग अपना लेते है।यही कारण है कि इनके जीवन में अनेक परिवर्तन आते है।यदि मेष जातक अपनी प्रकृति को नियंत्रण में रख सके तो,वे भौतिक रुप से हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते है।इन्हे झुठे प्रशंसको और चापलूसों से सावधान रहना चाहिए।ऐसा ना करने पर ये अहंकार में अपना ही पतन कर लेते है।इन जातको के स्वभाव में भारी जल्दबाजी रहती है।उनके मस्तिष्क में नई नई और मौलिक योजनाएँ होते हुए भी धैर्य के अभाव में वे उन्हे प्रायः पूरा करने में असमर्थ रहते है।इन्हे हीन भावना से बचना चाहिए।मेष जातक अपने वस्त्रों का विशेष ध्यान रखते है।मेष जातकों की सदा ये इच्छा रहती है कि उनके संसर्ग में आने वाले उन्हे अपने से ऊँचा समझे।स्त्री जातिका में उपरोक्त गुणों के साथ महत्वकांक्षी,उतावली,क्रोधी,ईर्ष्यालु,योजनाबद्ध ढ़ँग से कार्य करने वाली होती है।अपने द्वारा किये गये कार्य का परिणाम शीघ्र देखना पसंद करती है।ये स्वतंत्र विचारों की होती है।ये प्रेम के क्षेत्र में स्पष्ट एवं उत्साही है तथा प्रेम की भूखी है।यदि इनको प्रेम का व्यवहार ना मिले तो इनके व्यवहार में क्रोध और शुष्कता आ जाती है।इनके लिए मेष,सिंह,धनु लग्न वाला पति उतम रहेगा।ये नेतृत्व प्रधान होने के कारण पति को नियंत्रण में रखना चाहती है।
 आर्थिक और कार्यकलाप:- यदि ये स्वयं पर नियंत्रण रख सके तो ऐसी कोई ऊँचाई नहीं जो इनकी पहूँच से बाहर हो।ये लोग प्रायः ऐसे काम पसंद करते है जिनमे ऊन्हे निजी नेतृत्व कर गुण दिखाने का अवसर मिले।ये अधिक कामुक भी होते है।इन जातकों को प्रेम सम्बंधों में भारी यातना भोगनी पड़ती है।ये विपरीत लिंगि के मन को शायद ही पढ़ पाते हो।इनमें आकर्षक व्यक्तित्व होता है।ग्रह प्रभाव से कभी कभी ये अस्थिर तथा भावुक होते है,इन्हें दर्द भरा संगीत साधन अच्छा लगता है। ऐसे विचार से ये प्रेम के भूखे होते है।मेष जातिकाएँ भी कम आदर्शवादी नहीं होती,किन्तु प्रेम और विवाह सम्बंध टुटने के खतरे उनके आगे भी रहते है।मेष जातिकाएँ प्रेम प्रसंगों में बढ़ चढ़ कर भाग लेती है।इसमें उनकी इच्छा ही सर्वोपरि रहती है।मेष पत्नियाँ हाजिरजवाब और स्वछंद स्वभाव वाली होती है।वे रुप गर्विता और अपनी शान शौकत पर घमंड करने वाली होती है।मेष वाले को पाचन,सिरदर्द,जलन,मुहाँसे,अनिद्रा,दाद,मलिरिया रोगों के शिकार हो सकते है।उन्हे आराम का विशेष ध्यान रखना चाहिए।शाक सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए।नशा से बचना चाहिए तथा माँसाहारी कम सेवन करना चाहिए।मेष प्रधान जातक को रत्न धारण में मूँगा,मोती,माणिक्य,पोखराज धारण करना चाहिए।वैष्णव उपासना करना चाहिए।हनुमान,शिव,जगदम्बा की उपासना उतम फल देगी।उपरोक्त बातें सत्य हो सकती है परन्तु ग्रह के तालमेल के कारण फल में शुभता अशुभता हो सकती है।


मेष राशि और लग्न का यह संक्षिप्त फल बताता है,परन्तु जन्मपत्री के लिए जन्मदिवस,मास,सन् और जन्म समय तथा स्थान का ज्ञान होना अनिवार्य है।अगर यह जानकारी किसी को हो,तो उसके भविष्य का सही सही स्थिति बताया जा सकता है।ग्रहों का प्रभाव दृष्टि शुभ बलाबल देख कर निश्चित जातक का भाग्य परिवर्तित कराया जा सकता है।

आवश्यक सूचना:- आप हमसे सीधा सम्पर्क कर सकते है,मेरे मोबाईल पर बात कर.......समय है दोपहर १ से शाम ५ बजे तक,रात्रि ७ से ८.३० तक।आपके किसी भी प्रकार के कष्टों का निवारण पूजा पाठ,मंत्र और अनुष्ठान के द्वारा किया जाता है.....साथ ही उचित फलित और जन्मपत्रिका निर्माण भी किया जाता है...अधिक जानकारी हेतु सम्पर्क करे........।

"अन्त में आपसे कुछ बात मेरे विषय में":-  मै ज्योतिष एवं साधना क्षेत्र का व्यक्ति हूँ।कितने लोगों कि समस्या का समाधान माता की कृपा से हुआ है।मै अभी ब्लागिंग में नया हूँ।भारत के बड़े बड़े शहरों में यदा कदा मै अनुष्ठान और ज्योतिष परामर्श  के सिलसिले में जाता हूँ,बहुत से लोग मुझसे जुड़े है।लेकिन चूँकि ब्लागिंग में नया हूँ....इसलिए आप लोगों का  समर्थन चाहता हूँ ।